उसने कहा और मैने मान लिया, ये बात थी बस हम दोनो की, बिना कोई वाद-विवाद के उसका कहा मान
लिया मैंने, जैसा की पिछ्ले ५ वर्षो से मानता आ रहा
था।
पर, ना
जाने क्यों इस बार के 'मान लेने' में वो सुकुन और आत्मविश्वास नहीं था, थी तो बस बेचैनी। फिर भी मैंने मान लिया।
और इस
बार के मेरे 'मानने' में मेरे अंदर आश्चर्य, अधंकार, घबराहट और आंसू छिपे थे। उसकी कही हुई
बात के बाद मैं पिछे मुड़ के देखता हूँ और उस मखमली यादों को छुता हूं तो स्पर्श
सिर्फ काँटे होते है और अपनी यादों से लहु-लुहान हो कर शर्मीदां हो जाता हूं।
मैंने
स्वप्न में ही ह्कीकत को जी कर देखा पर स्वप्न के टूटते ही ह्कीकत का टुट जाना
स्वभाविक है। और मैं अब खामोश बैठा हूं। अब खुद से कोई प्रश्न नहीं करता, ना कोई जबाब देता हुं। उसका कहे शब्दों
के जहर ने मुझे खुद से अलग कर दिया। फिर भी मैंने उसका कहा मान लिया।
और
मिर्जा गालिब की ये पंक्तिया चरितार्थ हो गयी…
" दर्द
का हद से गुजर जाना है दवा हो जाना "
मेरा प्रथम प्रयास
जवाब देंहटाएंvery sad story
जवाब देंहटाएंfor your man ya manana
जवाब देंहटाएंwo chor ke kya gayi tum to devdas hi ho gaye.bahut sahi ja rahe ho..........
hi i m ur best friend. please accept my hertiest welcome for your bright future.
जवाब देंहटाएं150 views .impressive.lagata hai kuch bat hai bande me..
जवाब देंहटाएंwwwwwwwwwwwww
जवाब देंहटाएंBahut aacha hai..!
जवाब देंहटाएंthank you PRAKASH
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