मैं दिवारों के पार देखता था,
मैं देखता था सिसकती आहों को..
मैं देखता था पलकों के आंसूओं को..
पर बाहर सब कुछ ठीक था...
वही आँखें हँसती रहती..
वही चेहरा मुस्कुराता रहता..
मैं टुटता गया झुठी दूनिया से,
मैं रुठता गया झुठी दूनिया से,
मैं दिवारों के पार देखता था...
अंदर की उखड़ती पड़तों को वह चुनता रहता,
खुद को तोड़कर खुदी को जोड़ता रहता,
पर बाहर सब कुछ ठीक था...
मैं देखता था सिसकती आहों को..
मैं देखता था पलकों के आंसूओं को..
पर बाहर सब कुछ ठीक था...
वही आँखें हँसती रहती..
वही चेहरा मुस्कुराता रहता..
मैं टुटता गया झुठी दूनिया से,
मैं रुठता गया झुठी दूनिया से,
मैं दिवारों के पार देखता था...
अंदर की उखड़ती पड़तों को वह चुनता रहता,
खुद को तोड़कर खुदी को जोड़ता रहता,
पर बाहर सब कुछ ठीक था...
मैं दिवारों के पार देखता था...