मंगलवार, 11 सितंबर 2012

mesmerizing night


मैं उसका हाथ थामे खड़ा हूँ.. चाँद की मद्धम रौशनी उसकी आँखों की चमक और बढ़ा रही है। मैं खामोश हूँ पर लाखों सवाल हैं जो उसकी लहराती लटों में उलझ उलझ कर मुझे बेचैन कर रही हैं... मुझे जवाब नहीं मिलता है और मैं भी उसकी सुनहली लटों में उलझ जाता हूँ।



मेरी बेचैनी को महसुस कर वो मेरी तरफ देखती है और मेरे सारे सवालों को पढ़ लेती है... उसकी आँखों की चमक अब बूंदें बनकर लुढ़कने को आतुर हैं। मैं देखता हूँ की उनमें चाँदनी की चमक से ज्यादा मेरी यादें घुली हैं.... ।
अब मेरे सवालों को जवाब की जरुरत नहीं है ... लाखों सवालों का जवाब बस एक बूंद ने दे दिया।
मैं चुप हूँ.. वो अब भी मेरी आँखों में झांक रही है मानो पूछ रही हो अब भी कोई सवाल बाकी है
?
मैं खो जाता हूँ उसकी आँखों में .... अब उसकी आँखों में मैं खुद को महसुस कर रहा हूँ। वो मेरा हाथ थामें चाँद को निहार रही है....और मेरी निगाहें उस चकोर के पीछे दौड़ रही है जो बेचैनी से चाँद को छू लेना चाहता है। मैं उसके हाथों के स्पर्श को सुनता हूँ जो मुझसे कह रही है-  मुझे चाँद नहीं बनना मुझे बस तुम्हारा स्पर्श चाहिए। मैं उसका हाथ जोर से थाम लेता हूँ ... उसके चेहरे की सिकन गायब हो जाती है।
हम हाथ थामे नदी की भींगी रेत पर चलने लगते है .... किनारे की भींगी-भींगी रेत देखकर वो कहती है-
 लहरें क्यों किनारों को बिना कुछ कहे स्पर्श कर के लौट जाती है.. और किनारों के पास सिर्फ भींगी यादें छोड़ जाती है…. ”
मैं लहरों को देखकर कहता हूँ-
लहरें लौटती नहीं हैं..... लहरें तो किनारे को अपना सर्वस्व सर्मपण कर देती है.....।
वो अपना सर मेरे कंधो पर टिका देती है.... और मैं चाँद को देखने लगता हूँ.....