हम क्या चाहते हैं ?
खुशी, शांति, पैसा, आराम।
इन शब्दों को पा लेने के बाद भी कहीं-न-कहीं मन में एक चाहत बनी रहती है कि हम
क्या चाहते हैं। पैसा हमें आराम देती है, आराम हमें खुशी और खुशी हमें शांति देती
है। मतलब पैसा और शांति में संबंध दिखाई पड़ता है। अंततः शांति प्राप्ति के लिए हम
जीवन भर अशांत रहते हैं। हम अपने पुरे जीवन में यह तय नहीं कर पाते कि कितने पैसे
इकठ्ठे करने के बाद आराम करेंगे, खुशी पाएगें, और शांति प्राप्त करेंगे। इसी जद्दोजहद
में अपनी छोटी-छोटी खुशियों को रौंदते हुए आगे बढ़ जाते हैं।
कभी-कभी हमारे जीवन
में अशांति पैसों कि अपूर्णता से नहीं बल्कि अपनो कि अपूर्णता से भी आती है। परन्तु
हम खुद से पुछे कि क्या सच में इन सब बातों से अशांति आती है, तो हमें खुद से जबाब
आएगा “ नहीं ”। इन सब बातों से हम विचलित
हो सकते हैं पर अशांत नहीं।
हम अशांत सिर्फ खुद
से हो सकते हैं। हमें खुद के अलावा कोई अशांत नहीं कर सकता है। और जिस प्रकार हम
अशांत खुद के कारण होते हैं, ठीक उसी प्रकार हमें शांत होने के लिए शारीरिक आराम,
खुशी और पैसों की आवश्यकता शायद ही महसूस हो। हम शांति पा सकते है तो सिर्फ खुद
से।
खुद कि शांति निर्भर
करती है अपनी आत्मा कि सही पुकार सुनने और उसे व्यवहार में लाने पर। जब हम अपनी
आत्मा कि पुकार सुनना शुरु कर देते हैं, उसी समय से हम शांति की ओर अग्रसर होने
लगते हैं। चाहे वह कार्य, व्यवहार कैसा भी हो, चाहे सामाजिक विचारधारओं के विपरीत
ही कोई कदम उठाना पड़े, हमें निर्भिक होकर आत्मा रुपी चालक के दिखाए गए राह पर
चलते रहना चाहिए।
परंतु ज्योंही हम इस
राह से विमुख होते हैं, हम खुद को अशांति की राह पर धकेल देते हैं। खुद से विमुख
होने के बावजूद हमारी आत्मा हमें निरंतर पुकारती रहती है और उस पुकार का दमन कर हम
भौतिकता के दलदल में धंसते जाते हैं।