भोपाल से दिवाली की छुट्टियों में घर लौटते वक़्त झांसी रेलवे स्टेशन पर दो घंटे का पड़ाव था। स्टेशन पर आम लोगो की भीड़ के साथ कुछ विदेशी सैलानी भी थे।
लोग उन्हें ऐसे घुर रहे थे जैसे वे देवलोक से आये हों और वे लोगों को ऐसे देख रहे
थे मानो सब के शरीर में किचड़ लगा हो।
छोटे बच्चे के हुजूम जो ईधर-उधर भीख मांग रहे थे, विदेशी सैलानियों को देख आम लोगों को छोड़ उन्हे रिझाने की कोशिश करने लगे। उन बच्चों में एक छोटी सी बच्ची जो सैलानियों के
सामने नाच-नाच के हाथ पसारने लगी, मुझे
लगा उन विदेशियों के सामने मै नाच रहा हूँ ..... सैलानियों का दल जो उस बच्ची को
नाचते देख आपस में ऐसे मुस्कुरा रहे थे जैसे कह रहें हो this is India।
कुछ ही देर में फटे और गंदे कपड़ो में लिपटी हुई एक औरत
जिसके गोद में महज दो साल कि बच्ची थी, विदेशी
सैलानियों के सामने हाथ फैला कर खड़ी हो गई। और हम अच्छे कपड़ो में भी नंगे दिखने
लगे।
सैलानियों के दल में एक को उस
औरत पर दया आ गई और उसने अपने जुठे बर्गर को उसकी तरफ बढ़ा दिया औरत ने हूलस कर
बर्गर ले लिया और अपने बच्चे को खिलाया और खूद ऐसे खाने लगी जैसे वर्षो की भूखी हो।
बचपन से सुनता आ रहा था – “
भारत गरीबों का देश है ” पर उस दिन मुझे एहसास भी हो गया कि हम कितने गरीब है।
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