उस वृद्ध (बाबा) का एकमात्र सहारा उसकी बेटी थी.... जो कुछ
महीनों पहले बिमारी के कारण गुजर गयी। इस हादसे के बाद शायद ही किसी ने उन्हें
मुस्कुराते देखा हो। घर के हर हिस्से में यादों के कांटे उभर आए थे, जहाँ भी नजर
पड़ती एक चुभन सी होती। घर का एकांत वातावरण उन्हें अंदर-ही-अंदर खाए जा रहा था।
एक रात वे चुपचाप बैठे थे
तभी उन्होने घर के पिछे से पिल्लों की आवाज सुनी, जाकर देखा तो चार पिल्ले
एक-दुसरे से चिपके हुए थे। बाबा ने चारों को उठाकर घर में लाया और छोटे से प्याले में
दुध दिया तो चारों पिल्ले जल्दी – जल्दी दुध पीने लगे। आज कई दिनों के बाद बाबा के
चेहरे पर मुस्कुराहट कि रेखा दिखी।
बाबा का पूरा दिन पिल्लों
कि देखभाल में ही गुजरने लगा। बाबा जब कभी बाहर जाते चारों के लिए कुछ न कुछ जरुर
लाते। बाबा जब घर के दरवाजे पर पहुँचते तो चारो पिल्ले उनके पैरों में ऐसे लिपट जाते
मानो पुछ रहें हो कि मेरे लिए क्या लाए।
समय बीतता
गया.... बाबा के खालीपन को उन पिल्लों ने
भर दिया। अब वे चारो बाबा के रक्षक का काम कर रहे थे। रात में हल्की खड़खड़ाहट भी
होती तो चारों शोर मचाकर मोहल्ले को जगा देते। बाबा को मन ही मन चारों पर गर्व
होता।
एक दिन बाबा कि
तबीयत अचानक बिगड़ गई... ज्वर के कारण बिस्तर पर पड़े-पड़े शाम हो गई पर वे उठे
नहीं। उनके प्रिय कुत्तों को भी इस बात का आभास था कि कुछ गड़बड़ जरुर है.. कभी वे
बाबा के तलवे चाटते तो कभी दौड़कर बाहर जाते। उस रात उन चारों ने ऐसा करुण क्रुंदन
किया कि आस-पास के लोगों को कुछ अपशकुन का आभास हुआ... और बाबा को अस्पताल ले जाया गया।
बाबा को अस्पताल ले
जाने वाली गाड़ी के पिछे-पिछे चारों अस्पताल तक जा पहुँचे। लगातार चार दिनों तक
उनकी आँखें उसी दरवाजे पर लगी रही जिस दरवाजे से बाबा को अंदर ले जाया गया था।
पाँचवे दिन बाबा को उसी दरवाजे से निकलते देख चारों दौड़कर बाबा के पैरो से
लिपट गए। उस वृद्ध कि आँखों से अविरल आँसु बह रहे थे। शायद ये आँसु खुशी के
थे....