मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

सूखे यादों के पन्ने

एक हूक सी उठती थी मेरे दिल में और  मैं बेचैनी में रातों को उठकर सिगरेट* सुलगा कर उसकी बची यादों को मिटाने लगता तो कभी मन की बेचैनी को शब्दों का रुप देने लगता.... पर इतना आसान होता इस हूक को मिटाना...तो शायद य़े जज्ब़ात यहाँ नहीं होते।


उसका चेहरा मेरे सामने आता और मैं झटके से अपनी आँखों को बंद कर लेता.... 
पर पलकों के पीछे के अंधेरे में वो चेहरा फिर उभर जाता और मैं लाचार होकर अपनी आँखों पर तरस खाता और मेरी आँखें मुझ पर तरस खा कर अपने दो मोती मेरे चेहरे पर लुढ़का देती। मैं उन मोतियों को सहेजना चाहता था पर वे मोतियों भी मेरी यादों की तरह सूख जाती । मेरे पास सहेजने को कुछ न बचता....


मैं गिड़-गिड़ाता अपने भगवान के सामने की  मेरे मालिक मुझ पर रहम कर.......
पर कहीं भी आशा की किरण नहीं दिखती।
मैं बेबस सा घने बादलों में फँसे उस तारे को देखता जो बाँहें पसार कर किसी को बुलाता रहता।
बीते वक्त को याद करने के अलावा मैं और क्या करता..... अपनी वही सूखी यादों वाली डायरी के पन्ने पलटता और अपनी यादों के राख में कुछ ढुंढ़ने की कोशिश करता .....

* (सिगरेट पीना स्वास्थ के लिए हानिकारक है सिगरेट पीने से कर्क रोग होता है)

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