शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

संस्कारो का कैमरा

आपकी तस्वीर मीटा नहीं सका इसलीए धुधंली करने के प्रयास में लगा हूँ। धुंधली करने के की कोशिस ऐसी-ऐसी है, जो ना केवल आपकी तस्वीर बल्कि मेरी रुह को भी धुंधली कर रही है। मैंने अपने आप को बचाने के लिए आपकी यादों के दामन को छोड़ना मुनासिब समझा। अगर इन प्रयासों को छोड़कर मैं अपने विश्वास पर अटल रहता तो आज मैं जीवित नहीं होता। जिंदा रहने के लिए मैं उन कार्यो के लिए विवश हुआ जो मेरे व्यक्तित्व और नैतिकता के प्रतिकूल था।

आपका साथ सिर्फ साथ नहीं था इस साथ के कई मायने थे। आपका मेरे पास होना मेरे जीवन के सार्थकता को साबित करता था। आपने मेरे लिए हमेशा एक अदृश्य कैमरे का काम किया और वह कैमरा जब तक मेरे साथ रहा मैंने अपनी गलतियों को दिन-ब-दिन सुधारा, उल्टी-सीधी हड़कतों को नियंत्रण में किया, सही शब्दों का इस्तेमाल किया। इन सभी बातों के पीछे मेरी कोई भूमिका नहीं थी, भूमिका थी तो सिर्फ आपकी आँखों की जो मेरे साथ अदृश्य कैमरे की भांति रहती थी। आपने अपनी आँखें मुझसे फेर ली और मेरा कैमरा भी मुझसे दूर हो गया। इसके बाद धीरे-धीरे मैं अपने व्यक्तित्व की उँचाईयों से सरकने लगा।

आपके साथ होने का भ्रम ही मुझे पूलकित कर देता और मुझे ईश्वर, सत्य, सद्कर्म में विश्वास बढ़ा देता था। मेरी मौलिक व्यवहार इन सब बातों में नहीं था, मैं तो सिर्फ आपके कारण ही शुद्धता के चरम पर पहुँचने की कोशिस में लगा था। आपके साथ ने संस्कारो की आदत लगा दी जो कि मेरे व्यवहार में शामिल हो गया। अब ये संस्कार मुझे आप ही कि तरह पराये लगते हैं, अब इन संस्कारो के साथ रहा तो मुझे अपने प्राणों का मोह छोड़ना पड़ेगा और अगर मेरे प्राण रहते हैं तो मुझे इन संस्कारो को छोड़ना होगा।

आपने इस कमाल से खेला था इश्क की ब़ाजी
मैं अपनी जीत समझता रहा, अपनी हार होने तक

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