उसका कोई तो नहीं था
यहाँ, और यहाँ उसकी खुशी की कोई वज़ह भी नहीं थी। वो मेरे यहाँ काम करने आया था।
वो गायों के साथ खेलता, अकेले में गुनगुनाता, और अपने साँवले से चेहरे पर हमेशा
मुस्कान लिए रहता था। वो कभी-कभी किसी से गंभीरता से बात नहीं करता था पर उसमें
गंभीरता थी। वो याद करता अपनी माँ को, अपने गाँव को पर किसी से कहता कुछ नहीं।
हाँ, वो हँसता भी था पर उसकी हँसी उसके कामो में व्यस्त हो जाती थी। कुछ बातों को
लेकर मुझसे ऐसे बात करता जैसे बड़ा अनुभवी हो। उसके आँखों की मायूसी और चेहरे की
मुस्कान ने लिखने को विवश किया।
इतनी बातें तब की
हैं जब वो मेरे यहाँ आया था। अब उसे यहाँ रहते हुए 4 वर्ष बीत चुके हैं, उसमें आए
कुछ परिवर्तन को देखकर मैं हैरान हूँ। मुझे उससे सहानुभूती थी पर उसमे आए परिवर्तन
ने मेरी सहानुभूती को परास्त कर दिया। वो भूल गया अपनी माँ को, हद तो तब हो गई जब
उसे अपनी माँ के मृत्यू का समाचार मिला तो वो मुस्कुराने लगा। अब उसकी मुस्कान की
मासूमियत भी जाती रही।
मैने जब उसमें आए परिवर्तन का कारण का पता लगाया तो और भी हैरानी में
पड़ गया। बीते 3-4 वर्षो में उसने व्यस्कता की पहली सीढ़ी पर कदम रखा था और इसी
परिवर्तन ने उसकी मासूमियत को उससे छीन लिया। पर लोग कहने लगे हैं की अब वो बड़ा
हो गया है …….
who is he?u r publishing ur life story in artistic writing
जवाब देंहटाएंok
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